Sunday, May 23, 2010

नागरी प्रचारिणी सभा

यह मुद्दा ब्लॉग-विश्व के लिये नया हो सकता है लेकिन हिंदी अनुसंधान, भाषा और साहित्य की दुनिया के लिये प्राचीन. एक पुरानी विपत्ति - जो बदली हुई, बदलती हुई परिस्थितियों में ज़्यादा घनघोर और प्रासंगिक होकर सामने है. दरअसल ११७ साल पुरानी यह संस्था एक लम्बी अफ़सोसनाक प्रक्रिया के हवाले होकर फ़िलहाल मरण के क़रीब है. हम लोग उसे बचाना और बढ़ाना चाहते हैं. यह स्थानीय कोशिश है लेकिन इसे वैश्विक रंगत देनी है. इसी इरादे से हम ब्लॉग के दरवाज़े खटखटा रहे हैं. हम ऐसे ही सबको पुकार सकते हैं और लोगों तक ख़बरें पहुँचा सकते हैं. यह आजकल इस महान संस्था पर काबिज़ ओछे, भ्रष्ट और निरे असाहित्यिक लोगों से दो-दो हाथ करने की वर्चुअल रणभूमि है.

यहाँ पर हम सभा से जुड़ी समस्त ख़बरों, उसकी विडम्बनाओं और उसके उज्जवल अतीत की अब असंभव लगती गाथाओं के साथ निरंतर हाज़िर होते रहेंगे.

3 comments:

  1. सराहनीय सोच!...आगे बढ़ाएं तो हर प्रकार का सहयोग!

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  2. लेकिन आप गए कहाँ 'निरंतर हाज़िर' होते रहने की उद्घोषणा के बावज़ूद?

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  3. आप कुछ लिख नहीं रहे हैं क्या ?

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