Tuesday, May 25, 2010

ज्ञापन और आह्वान

यह एक ज्ञापन है जो मानव संसाधन विकास मंत्री को संबोधित है. ज़ाहिर है, यहाँ अन्य लोगों का भी आह्वान है. हम लोगों से अपील करते हैं कि यहाँ आएँ और हमारा समर्थन करें.

ध्यानार्थ,

श्री कपिल सिब्बल

मानव संसाधन विकास मंत्री

भारत सरकार

मान्यवर,

हम हिन्दी के लेखक, अध्यापक, हिन्दीजीवी और हिन्दी में सोचने, बोलने और लिखने वाले लोग आपका ध्यान भाषा, शोध और साहित्य की अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की संस्था ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की दुर्दशा की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं।

(1) हिन्दी के प्रसार और निर्माण में अनिवार्य भूमिका निभाने वाली 117 साल पुरानी यह संस्था अपने सभी आयामो में तबाही का शिकार हो गयी है। यह संस्था फिलहाल निहायत गैरकानूनी तरीके से पद्माकर पाण्डेय नामक एक सर्वथा असाहित्यिक व्यक्ति और उसके नाते-रिश्तेदारों के नियंत्रण में है। ये लोग निजी लाभ के लिए मनमानेपन से संस्था का उपयोग कर रहे हैं। इनके बेहद नाकाबिल और घपलेबाज हाथो में ‘सभा’ की वाराणसी, नई दिल्ली और हरिद्वार स्थित अप्रतिम भौतिक और बौद्धिक संपदा और इसकी स्थापना के महान संकल्प अत्यन्त खतरे में हैं। हालात ये हैं कि बीते सात वर्षों में ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की आम सभा की एक भी बैठक नहीं हुई है और महज़ षड्यंत्र से एक परिवार संस्था पर कब्ज़ा जमाये हुए है, प्रतिवर्ष होने वाले चुनाव भी पिछले सात वर्षों से नही कराये गये हैं।

(2) दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ, साहित्येतिहास के विलक्षण दस्तावेज, ग्रन्थ और ‘सभा’ के ऐतिहासिक ‘आर्यभाषा पुस्तकालय’ में एक अरसे तक संरक्षित रही आयीं निधियाँ दयनीय उपेक्षापूर्ण रखरखाव के कारण नष्ट हो चुकी हैं और नष्ट हो रही हैं।

(3) ‘सभा’ में कार्यरत कर्मचारियों को नाममात्र के वेतन पर निजी किस्म के कामकाज करने को बाध्य किया जाता है। पी.एफ. और पेंशन आदि के खातों में पर्याप्त घपला करके कर्मचारियों के भविष्य को भी संकटापन्न कर दिया गया है।

(4) ‘सभा’ के टंकण, मुद्रण और प्रकाशन जैसे ऐतिहासिक महत्व के विभाग बन्द हो चुके है। ‘सभा’ के प्रकाशनों का विक्रय भी क्षीण और लचर तरीके से नाममात्र को जारी है। महँगी मशीनें रिश्तेदारों को ‘नीलामी’ का दिखावा करके भेंट की जा रही हैं और इन मदों में मिलने वाले सरकारी अनुदानों इत्यादि को निरन्तर हजम किया जा रहा है।

(5) आलोचना, शोध और अनुसंधान के क्षेत्रो में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाली हिन्दी की अप्रतिम पत्रिका- ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का प्रकाशन अरसे से बन्द कर दिया गया है।

(6) पद्माकर पाण्डेय ने कुछ लोगो को सभा की अतिथिशाला में नाजायज़ तरीके़ से बसा दिया है। यों, अतिथिशाला के कमरे साहित्यकारो, अध्यापकों, विद्वानो के लिए कभी उपलब्ध नहीं रहे।

(7) आमजन और जागरूक पाठक सभा-परिसर में इकठ्ठा न हो सकें, इसलिए सभा के वाचनालय को बन्द कर दिया गया है।

(8) ‘सभा’ के परिसर को शादी-विवाह के मौकों पर किराये पर उठाया जाने लगा है। इस बहाने उसमें स्थानीय माफिया और अन्य असामाजिक तत्वों को घुसाने की साजिश की जा रही है।

(9) फिलहाल सभा के किसी भी कार्य में सार्वजनिक संस्था जैसी ईमानदारी, खुलापन और पारदर्शिता नहीं है।

(10) कुल मिलाकर ‘सभा’ एक ऐसी जगह बना दी गयी है जिसका भाषा, शोध, साहित्य और अनुसंधान से विरोध और शत्रुता का सम्बन्ध है, जहाँ पर देसी-विदेशी विद्वानों को उपेक्षा या अपमान के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता और जिसे निजी सम्पत्ति या भूखण्ड-मात्र की इस्तेमाल करने का दुष्चक्र निरन्तर तेज़ होता हुआ चला आ रहा है।

हम आपसे निवेदन करते हैं कि तत्काल वस्तुस्थिति में हस्तक्षेप करें और इस महान संस्था को नष्ट होने से बचायें।

निवेदकगण

Sunday, May 23, 2010

नागरी प्रचारिणी सभा

यह मुद्दा ब्लॉग-विश्व के लिये नया हो सकता है लेकिन हिंदी अनुसंधान, भाषा और साहित्य की दुनिया के लिये प्राचीन. एक पुरानी विपत्ति - जो बदली हुई, बदलती हुई परिस्थितियों में ज़्यादा घनघोर और प्रासंगिक होकर सामने है. दरअसल ११७ साल पुरानी यह संस्था एक लम्बी अफ़सोसनाक प्रक्रिया के हवाले होकर फ़िलहाल मरण के क़रीब है. हम लोग उसे बचाना और बढ़ाना चाहते हैं. यह स्थानीय कोशिश है लेकिन इसे वैश्विक रंगत देनी है. इसी इरादे से हम ब्लॉग के दरवाज़े खटखटा रहे हैं. हम ऐसे ही सबको पुकार सकते हैं और लोगों तक ख़बरें पहुँचा सकते हैं. यह आजकल इस महान संस्था पर काबिज़ ओछे, भ्रष्ट और निरे असाहित्यिक लोगों से दो-दो हाथ करने की वर्चुअल रणभूमि है.

यहाँ पर हम सभा से जुड़ी समस्त ख़बरों, उसकी विडम्बनाओं और उसके उज्जवल अतीत की अब असंभव लगती गाथाओं के साथ निरंतर हाज़िर होते रहेंगे.